श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति
श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार-प्रसार हेतु कार्यरत देश की प्राचीनतम और शीर्षस्थ संस्थाओं में से एक है। सारे देश में राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार-प्रसार कर देशवासियों में सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के उद्वेश्य से समिति की स्थापना 29 जुलाई 1910 को इन्दौर में हुई थी।
मध्यभारत की विख्यात शिक्षण संस्था डेली कालेज के प्राध्यापक प.कृष्णानन्द् मिश्र और श्यामलाल शर्मा ने एक पुस्तकालय के रूप मे समिति का बीजारोपण किया था.राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रेरणा से स्थापित इस संस्था का पिछली एक शताब्दी का इतिहास राष्ट्रभाषा की सेवा के लिए किए गए विनम्र प्रयासों की गाथा कहता है।
अपनी स्थापना से ही समिति की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर रही है। सन् 1915 में मुम्बई और फिर सूरत में हुए साहित्य सम्मेलनों में समिति के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ.सरजूप्रसाद तिवारी और प्रोफेसर दुर्गाशंकर रावल ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने का संकल्प पारित कराया था।
इसके पश्चात समिति ने देशी रियासतों और राज्यों में हिन्दी के प्रचार के लिए एक व्यापक जन-आन्दोलन खड़ा किया.डॉं.तिवारी और उनके सहयोगियों के प्रयास से रीवा, दतिया, झाबुआ, देवास, सैलाना, रतलाम, पन्ना, चरखारी, अलीराजपुर, राजगढ़, प्रतापगढ़, नरसिंहगढ़, झालावाड़, डूंगरपुर, खिलचीपुर, मैहर, धार और बड़वानी सहित मध्यभारत और राजस्थान की लगभग तीस रियासतों के राजाओं ने हिन्दी को अपने राज्य मे राजकाज की भाषा घोषित कर दिया था. इनमे से कई राजाओ ने समिति के संरक्षक का दायित्व भी स्वीकार किया था।
सन 1915 मे समिति द्वारा उद्घोषित स्वर को अपना समर्थन देते हुए राष्टपिता महात्मा गांधी ने सन् 1918 में समिति के इन्दौर स्थित परिसर से ही सबसे पहले हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आह्वान् किया था।यहा हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन में तत्कालीन मद्रास प्रांत में हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना का संकल्प लेकर उसके लिए धन एकत्रित किया गया। इस तरह दक्षिण भारत के राज्यों में हिन्दी भाषा के प्रचार के पहले प्रयास में श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति ने अत्यंत उल्लेखनीय और प्रभावशाली भूमिका निभाई। वर्धा स्थित राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना में भी समिति की ऐतिहासिक भूमिका रही है।
उद्देश्य
वर्तमान संदर्भो में समिति हिन्दी भाषा के संवर्द्वन के साथ-साथ भारतीय भाषाओं में समन्वयन तथा सूचना तकनीक में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य कर रही है। हिन्दी के विभिन्न आयामों पर शोध के लिए समिति में डॉ.परमेश्वरदत्त शर्मा शोध संस्थान की स्थापना की गई है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त इस शोध केन्द्र में विभिन्न विषयों पर शोध कर रहे शोधार्थी हिन्दी भाषा और साहित्य को सम्रद्ध करने का प्रयास कर रहे है. देवभाषा संस्कृत के वैज्ञानिक आयामों पर शोध को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से समिति ने संस्कृत शोध केन्द्र की स्थापना भी की है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त इस केन्द्र का शुभारंभ भारत के राष्ट्रपति महामहिम श्रीमती प्रतिभादेवी सिंह पाटिल ने किया था।
समिति भाषा और साहित्य के साथ-साथ समिति अब कला,संगीत और संस्कृति के क्षेत्रों में सृजनशीलता को प्रोत्साहित करने का दायित्व निभा रही है। दरअसल भाषा और साहित्य के क्षेत्र में समिति की दीर्घकालीन राष्ट्रीय सेवा में मिले अनुभवों को अब राष्ट्रीय संस्कृति के विकास और विस्तार के लिए नियोजित कर समिति को भाषा,साहित्य,कला और संस्कृति का सृजन केन्द्र बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
पुस्तकालय
समिति का पुस्तकालय मध्यप्रदेश के सबसे समृद्व और प्राचीन पुस्तकालयों में से एक है। वर्तमान में यहा लगभग 22 हजार पुस्तके है। पुस्तकालय का कम्प्यूटीकरण हो चुका है। इस पुस्तकालय को नेशनल लायब्रेरी नेटवर्क से जोड़ने तथा ई-लायब्रेरी के रूप में विकसित करने के प्रयास किए जा रहे है। समिति की योजना यहॉ पर एक ऑड़ियों विज्युअल लायब्रेरी स्थापित करने की है। इन्दौर के रंगकर्मी और कलाकर्मियों को एक नया मंच देने के लिए समिति परिसर में एक आर्ट गैलरी और मासिक नाट्य शिविर शुरू करने की भी योजना बनाई जा रही है।
इतिहास
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स्थापना सनः १९१० में राष्ट्रपिता बापू की प्रेरणा से।
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देशी रियासतों में हिन्दी के प्रयोग के लिए अभियान सन् १९१५ में।
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हिन्दी साहित्य सम्मेलन के ८ वें अधिवेशन का आयोजन सन् १९१८ में,पूज्य बापू के सभापतित्व में।
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समिति द्वारा दक्षिण भारत में राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार के पहले अभियान का शुभारंभ सन् १९१९ में।
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देश की चिर-प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका वीणा का प्रकाशन प्रारंभ,सन् १९२७ से।
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हिन्दी साहित्य सम्मेलन के २४ वें अधिवेशन का आयोजन सन् १९३५ में। पुनः पूज्य बापू के सभापतित्व में।
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अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी के प्रचार के लिए हिन्दी वि पीठ की स्थापना,सन् १९४० में।
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राष्ट्रभाषा अभियान समिति का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन सन् १९४८ में महापंडित राहुल सांकृत्यायन की अध्यक्षता में।
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आचार्य विनोबा भावे एवं महादेवी वर्मा के मुख्य आतिथ्य में हिन्दी की वैज्ञानिक और तकनीकी पुस्तकों की राष्ट्रीय प्रदर्शिनी का आयोजन सन् १९५८ में।
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समिति द्वारा दक्षिण भारतीय प्रचारकों का सम्मान,सन् १९६६(प्रथम बार)।
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समिति द्वारा प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका वीणा का स्वर्ण जयंती समारोह,सन् १९७८ में। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर,श्री अशोक वाजपेयी,न्यायमूर्ति गोवर्धनलाल ओझा तथा प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री वीरेन्द्रकुमार सकलेचा की उपस्थिति में।
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साहित्यिक पत्रिका वीणा का हीरक जयंती समारोह सन् १९८४ में तत्कालीन शिक्षामंत्री डॉ.शंकरदयाल शर्मा की गरिमामय उपस्थिति में।
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तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम डॉ.ज्ञानी जैलसिंह जी द्वारा समिति का अवलोकन (१९८५ में)। पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर द्वारा समिति की यात्रा (१९९७)में। तत्कालीन उपप्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा समिति के समसामयिक अध्ययन केंद्र के मुखपत्र का विमोचन(१९९९ में)
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साहित्यिक पत्रिका वीणा का अमृतोत्सव वर्ष समारोह एवं अहिन्दी भाषी साहित्यकारों का सम्मेलन (वर्ष २००३ में हैदराबाद में)। ज्ञानपीठ सम्मान से अलंकृत वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.सी.नारायण रेड्डी,श्री मुनिन्द्रजी एवं श्री धोंडेराव जाधव की उपस्थिति में।
कोटि-कोटि कंठों की मधुर स्वरधारा है, हिन्दी भाषा है हमारी और हिन्दुस्तान हमारा है …
सरल है, सुबोध है, सुंदर अभिव्यक्ति है, हिन्दी ही सभ्यता, हिन्दी ही हमारी संस्कृति है।
सारे जात पात बंधन तोड़े, हिन्दी भाषा सारे देश को जोड़े।
हिन्दी में लिखे और हिन्दी में पढ़े, आओ हम सब आगे बढ़े।